Thursday, September 19, 2019

चर्चा में रहे लोगों से बातचीत पर आधारित साप्ताहिक कार्यक्रम

चुनाव आयोग के सूत्रों ने कहा कि जहां अप्रैल 9 के चुनाव में 50 फ़ीसदी से भी कम अरब मतदाताओं ने वोट दिया था वहीं इस बार उसमें तकरीबन 13 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा हुआ है.
आम तौर पर अरब पार्टियां किसी भी सरकार में शामिल नहीं होतीं मगर गन्त्ज़ ने जॉइंट यूनिटी लिस्ट के नेता अयमान ओदेह से संपर्क किया है. अरब नेता ने भी अपने पत्ते दबा कर रखे हैं और अपना स्टैंड साफ़ नहीं किया है.
स्पष्ट विजेता की ग़ैर-मौजूदगी में सभी की नज़रें राष्ट्रपति रुबेन रिवलिन की और हैं. उन्होंने कहा है कि वो तीसरे चुनाव को असफल करने के लिए किसी भी हद तक जाएंगे और नई सरकार के गठन के लिए हर सम्भावना पर नज़र डालेंगे.
राष्ट्रपति के मीडिया सलाहकार, जोनाथन कम्मिंग्स, ने कहा कि वो चुनाव आयोग के साथ निरंतर समन्वय बनाए हुए हैं और चुनावी नतीजे सामने आते ही सभी दल के नेताओं से विमर्श करेंगे. राष्ट्रपति के मीडिया सलाहकार ने भी दोहराया कि रिवलिन का पूरा प्रयास रहेगा की लोगों के मत को ध्यान देते हुए सही फ़ैसला किया जाए, मगर एक और चुनाव होने से रोकने के लिए भी हर संभव प्रयास किए जाएं.
नेतन्याहू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की व्यक्तिगत केमिस्ट्री को लेकर काफ़ी चर्चा होती रही है. मोदी इसराइल का दौरा करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री बने. नेतन्याहू ने उनकी खातिर कुछ इस क़दर किया कि वो सिर्फ़ अमरीकी राष्ट्रपति और पोप के लिए इसराइल में देखने को मिलता है.
दरअसल ये स्वागत कहीं अमरीकी राष्ट्रपति और पोप से भी आगे बढ़कर था क्योंकि नेतन्याहू मोदी के साथ साया बनकर पूरे तीन दिन साथ रहे.
दोनों नेताओं की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई जिसमें वो नंगे पांव समुद्र में प्रवेश कर रहे हैं. इस तस्वीर के बाद इसराइल में ब्रोमांस की चर्चा रही.
दरअसल, देखें तो नेतन्याहू के प्रचार का एक केंद्रीय बिन्दु रहा उनकी वैश्विक स्तर पर मुख्य नेताओं के साथ व्यक्तिगत पहचान. उन्होंने अपने मतदाताओं को ये दिखने का प्रयास किया की उनके कद का इसराइल में और कोई नेता नहीं है और इसराइल की सुरक्षा और सम्पन्नता के लिए उनका पद पर बने रहना बेहद आवश्यक है.
उनकी पार्टी ने अपने मुख्या कार्यालय पर तीन बड़े-बड़े बैनर लगवाए जिनमें उनकी अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और मोदी के साथ हाथ मिलते हुए तस्वीरें थी. इन तस्वीरों के साथ मोटे अक्षरों में लिखा था "नेतन्याहू, एक अलग ही लीग में".
ट्रंप और पुतिन ने नेतन्याहू की खुलकर मदद भी की, ख़ासकर अप्रैल 9 के चुनावों के पहले. नेतन्याहू ने अपने अंतरराष्ट्रीय कद के प्रदर्शन के लिए दो बार भारत जाने का कार्यक्रम भी बनाया मगर किन्हीं वजहों से दोनों बार उससे रद्द करना पड़ा.
भारत जाने का ये निमंत्रण नेतन्याहू की पहल पर हुआ और जानकार बताते हैं कि इस दौरे का कोई विशेष औचित्य नहीं था. दोनों देशों के बीच गहरे सम्बन्ध हैं और इस वक़्त कोई ऐसा ख़ास मामला नहीं था जिसकी वजह से नेतन्याहू का भारत जाना आवश्यक रहा हो.
भारत इसराइली हथियारों का सबसे बड़ा ख़रीददार है. दोनों देशों के दरमियान कई क्षेत्रों में गहरा सहयोग दिखाई देता रहा है. मोदी के दौरे के दौरान इसे रणनीतिक साझेदारी का चोला भी पहनाया जा चुका है.
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भारत-इसराइल संबंधों का ये स्वरूप मोदी-नेतन्याहू के बीच संबंधों की वजह से हैं. ये सही है कि इन दोनों नेताओं के बीच अच्छे संबंध हैं मगर भारत और इसराइल के बीच संबंध आपसी ज़रूरत और राष्ट्रीय हितों को मद्देनज़र हैं.
भारत कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार के दौरान भी इसराइल से सभी क्षेत्रों में सहयोग पा रहा था और हथियारों का सबसे बड़ा ख़रीददार था.
मगर ये बिल्कुल सही है कि जब-जब बीजेपी के नेतृत्व में दिल्ली में सरकार बनती है तब-तब भारत और इसराइल के संबंध सुर्ख़ियों में रहते हैं.
वैसे दोनों देशों के बीच के संबंध इंस्टिट्यूशनल हैं और सरकारों के बदलने से इस पर उतना फ़र्क़ नहीं पड़ता. चर्चा थोड़ी कम या ज़्यादा ज़रूर हो जाती है मगर नीतिगत फ़ैसलों पर इसका मूलभूत असर नहीं दिखता.