Tuesday, October 22, 2019

जानिए, अपनी मेंटल हेल्थ की हालत कैसी है?

(भारत में मानसिक सेहत एक ऐसा विषय है जिस पर खुलकर बात नहीं होती. बीबीसी की कोशिश लोगों को मेंटल हेल्थ के बारे में जागरुक करने की है. इस विशेष श्रृंखला में हम आपको सिलसिलेवार तरीके से बताएंगें कि आपको कब मेंटल हेल्थ के बारे में सोचने की ज़रुरत है. कुछ ऐसे लोगों से मिलवाएंगे जो अकेलेपन और डिप्रेशन या फिर अन्य किसी मानसिक बीमारी का शिकार रहे हैं या जिन्होंने अपने घर में मौजूद मानसिक रोगियों की देखभाल करते हुए डिप्रेशन आदि का सामना किया है. औरये लोग कैसे इससे बाहर निकलकर दूसरों को मानसिक रोग से बाहर आने में मदद कर रहे हैं.)
बहुत से लोग अब शायद यकीन न करें लेकिन 60 के दशक में रोमानिया में निकोलस चाचेस्कू ने लगातार 25 सालों तक न सिर्फ़ अपने देश के मीडिया की आवाज़ नहीं निकलने दी बल्कि खाने, पानी, तेल और यहाँ तक कि दवाओं तक पर राशन लगा दिया.
नतीजा ये हुआ कि हज़ारों लोग बीमारी और भुखमरी के शिकार हो गए और उस पर तुर्रा ये कि उनकी ख़ुफ़िया पुलिस 'सेक्योरिटेट' ने लगातार इस बात की निगरानी रखी कि आम लोग अपनी निजी ज़िंदगी में क्या कर रहे हैं.
चाचेस्कू को पूरे रोमानिया में 'कंडूकेडर' के रूप में जाना जाता था जिसका अर्थ था 'नेता'. उनकी पत्नी एलीना को राष्ट्रमाता का ख़िताब दिया गया था.
रोमानिया में भारत के राजदूत रह चुके राजीव डोगरा बताते हैं कि वो जब रोमानिया गए थे तो चाचेस्कू को गए दस साल बीत चुके थे लेकिन तब भी लोगों में उनके प्रति दहशत थी.
डोगरा याद करते हैं, "जब मैं अपना पद सँभालने रोमानिया पहुंचा तो मैंने पाया कि लोग अपनी छाया से भी घबराते थे. वो जब सड़क पर चलते थे तो हमेशा पीछे मुड़ मुड़ कर देखते थे कि कोई उनका पीछा तो नहीं कर रहा."
"जब वो पार्क में होते थे तो देखते थे कि वहाँ कोई आदमी तो उनकी निगरानी नहीं कर रहा. चाचेस्कू के ज़माने में अख़बार में एक छेद करके ख़ुफ़िया एजेंट बैठा होता था सब पर नज़र रखने के लिए."
एक रोमानियाई महिला कार्मेन बुगान के पिता चाचेस्कू के विरोधियों में से थे. ख़ुफ़िया पुलिस सिक्योरिटेट ने 10 मार्च, 1982 को उनके गाँव के घर छापा मारा और अगले पाँच सालों तक परिवार ने जो कुछ किया, उस पर नज़र रखी और घर के अंदर बोले गए उनके एक-एक शब्द को रिकॉर्ड किया.
कार्मेन बुगान ने बीबीसी को बताया, "जब मैं स्कूल से वापस आई तो मैंने देखा कि मेरा पूरा घर पुलिस वालों से भरा हुआ था. वो मेरे पूरे घर में ख़ुफ़िया माइक्रोफ़ोन लगा रहे थे. वो मेरे माता-पिता की सिगरेट पी रहे थे और बिना पूछे अपने लिए कॉफ़ी बना रहे थे."
"उस समय मुझे पता नहीं था, लेकिन बाद में मुझे पता चला कि मेरे पिता ने अपनी कार से बुखारेस्ट में चाचेस्कू के ख़िलाफ़ पर्चे बाँटे थे. मेरे पिता उस समय अंडरग्राउंड थे और मेरी माँ अस्पताल में थीं."
"वो मेरे घर का सारा खाना ले गए और मुझे तीन हफ़्तों तक सिर्फ़ पानी पर ही ज़िंदा रहना पड़ा."
कार्मेन कहती हैं, "हमें आदेश दिया गया था कि चाहे जितनी ठंड हो, हम अपने घर की खिड़कियाँ हमेशा खुली रखें, ताकि वो हम पर नज़र रख सकें. जब मैं स्कूल जाती थी तो एक ख़ुफ़िया एजेंट मेरे पीछे चलता था. मुझे उसका ब्राउन कोट और कैप अभी तक याद है. वो स्कूल छूटने तक गेट पर ही मेरा इंतज़ार करता था."
नाटे क़द के चाचेस्कू का क़द था मात्र 5 फ़ीट 4 इंच, इसलिए पूरे रोमानिया के फ़ोटोग्राफ़रों को हिदायत थी कि वो उनकी इस तरह तस्वीरें खीचें कि वो सबको बड़े क़द के दिखाई दे.
70 की उम्र पार हो जाने के बाद भी उनकी वही तस्वीरें छपती थीं जो उनकी 40 साल की उम्र में खीचीं गई थीं. एलीना को तो ये तक पसंद नहीं था कि कोई सुंदर महिला उनके बग़ल में खड़े हो कर तस्वीर खिंचवाए.
एलीना ने कई विषयों में फ़ेल होने के बाद 14 साल की उम्र में पढ़ाई छोड़ दी थी लेकिन रोमानिया की फ़र्स्ट लेडी बनने के बाद उन्होंने ऐलान करवा दिया था कि उनके पास रसायन शास्त्र में 'पीएचडी' की डिग्री है. ज़ाहिर है ये डिग्री जाली थी.
चाचेस्कू रोमानिया को एक विश्व शक्ति बनाना चाहते थे. इसके लिए ज़रूरी था बड़ी जनसंख्या का होना. इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने 'एबॉर्शन' यानी गर्भपात पर प्रतिबंध लगा दिया था.
इसी वजह से पूरे रोमानिया में तलाक़ लेना भी मुश्किल बना दिया गया था. चूंकि चाचेस्कू छोटे क़द के थे, वो हर चीज़ बड़ी पसंद करते थे.
उन्होंने राजधानी बुखारेस्ट में अरबों डॉलर ख़र्च कर 'पीपुल्स हाउज़' बनवाया था जिसका हीटिंग और बिजली का ख़र्च आज के ज़माने में लाखों डॉलर का आता है और भवन बन जाने के 25 साल बाद भी इसके 70 फ़ीसदी कमरे अभी तक ख़ाली हैं.
करीब 15,000 मज़दूर इस भवन को बनाने में लगे हुए थे और वो तीन शिफ़्टों में काम करते थे. वो अक्सर इस भवन का मुआएना करने जाते थे. दिसंबर, 1989 आते आते वो वहाँ सप्ताह में तीन चार बार आने लगे थे.
चाचेस्कू की जीवनी 'द लाइफ़ एंड ईविल टाइम्स ऑफ़ निकोलाई चाचेस्कू' लिखने वाले जॉन स्वीनी लिखते हैं, "15000 मज़दूरों के लिए वहाँ एक भी 'टायलेट' नहीं था. इसलिए जहाँ भी किसी मज़दूर को मौका मिलता, वो अपने आपको हल्का कर लेता."
"पूरे भवन में बुरी तरह से बदबू फैली हुई थी. जब भी चाचेस्कू के आने की ख़बर मिलती, मज़दूरों का एक दल दौड़ कर उस इलाके की गंदगी को साफ़ कर देता जहाँ चाचेस्कू को जाना होता था. एक दिन चाचेस्कू साफ़ किए गए इलाके से थोड़ा भटक गए और ऐसी जगह मुड़ गए जहाँ थोड़ा अंधेरा था. अँधेरे में उनका पैर मल के ढेर पर पड़ा और उनके दोनों जूते इससे बुरी तरह सन गए."

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